यदुवंशी योद्धा वीर लोरिक की कहानी अजब प्रेम की ग़जब कहानी, एक ही बार में तलवार से काट डाली चट्टान Epic of Veer Lorik- --------------------------------- वीर लोरिक एक लोकविश्रुत ऐतिहासिक नायक हैं जो अपने शौर्य और अपार बल के लिए समस्त उत्तर भारत में विख्यात हैं | वीर लोरिक का जन्म उत्तरप्रदेश के बलिया जनपद (वर्तमान ) के गऊरा गाँव में पंवार गोत्र के एक क्षत्रिय यदुवंशी अहीर घराने में हुआ था । उनके काल निर्धारण को लेकर बहुत विवाद है - कोई विद्वान् उन्हें ईसा के पूर्व का बताते हैं तो कुछ उन्हें मध्ययुगीन मानते हैं | वीर लोरिक राजा भोज के वंशज भी माने जाते हैं जो सन् (1167-1106) में राजा थे। जनश्रुतियों के नायक लोरिक की कथा से सोनभद्र के ही एक अगोरी (अघोरी?) किले का गहरा सम्बन्ध है, यह किला अपने भग्न रूप में आज भी मौजूद तो है मगर है बहुत प्राचीन और इसके प्रामाणिक इतिहास के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है | यह किला ईसा पूर्व का है किन्तु दसवीं सदि के आस पास इसका पुनर्निर्माण खरवार और चन्देल राजाओं ने करवाया। अगोरी दुर्ग के ही नृशंस अत्याचारी राजा मोलागत से लोरिक का घोर युद्ध हुआ था | बजरंगबली हनुमान के अंश कहे जाने वाले वीर लोरिक योगमाया माँ भवानी के बहुत बड़े भक्त थे और उन्हें स्वयं माँ का आशिर्वाद प्राप्त था। कहीं कहीं ऐसी भी जनश्रुति है कि लोरिक को तांत्रिक शक्तियाँ भी सिद्ध थीं और लोरिक ने अघोरी किले पर अपना वर्चस्व कायम किया | लोरिक ने उस समय के अत्यंत क्रूर राजा मोलागत को पराजित किया था और इस युद्ध का हेतु बनी थी - लोरिक और मंजरी (या चंदा) की प्रेम कथा। अगोरी के निकट ही महर सिंह नाम के एक यदुवंशी अहीर जागीरदार करते थे | महर सिंह की ही आख़िरी सातवीं संतान थी कुमारी मंजरी जो अत्यंत ही सुन्दर थी | जिस पर मोलागत की बुरी नजर पडी थी और वह उससे विवाह करने की लालसा पाल रहा था। इसी दौरान राजकुमारी मंजरी के पिता महर सिंह को लोरिक के बारे में जानकारी हुई और मंजरी की शादी लोरिक से तय कर दी गयी | वीर अहीर लोरिक बलिया जनपद के गौरा गाँव के निवासी थे, जो बहुत ही सुंदर, बहादुर और बलशाली थे | रौबदार मूंछें, 8 फीट ऊंचे भीमकाय शरीर के वीर लोरिक की तलवार का वज़न 85 मण था। उनके बड़े भाई का नाम था सवरू । वीर लोरिक माँ भवानी के बहुत बड़े भक्त थे और कहा जाता है

यदुवंशी योद्धा वीर लोरिक की कहानी
 
अजब प्रेम की ग़जब कहानी, एक ही बार में तलवार से काट डाली चट्टान 
Epic of Veer Lorik-
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वीर लोरिक एक लोकविश्रुत ऐतिहासिक नायक हैं जो अपने शौर्य और अपार बल के लिए समस्त उत्तर भारत में विख्यात हैं | 

वीर लोरिक का जन्म उत्तरप्रदेश के बलिया जनपद (वर्तमान ) के गऊरा गाँव में पंवार गोत्र के एक क्षत्रिय यदुवंशी अहीर घराने में हुआ था ।

 उनके काल निर्धारण को लेकर बहुत विवाद है - कोई विद्वान् उन्हें ईसा के पूर्व का बताते हैं तो कुछ उन्हें मध्ययुगीन मानते हैं | 

वीर लोरिक  राजा भोज के वंशज भी माने जाते हैं जो सन् (1167-1106) में राजा थे। 

जनश्रुतियों के नायक लोरिक की कथा से सोनभद्र के ही एक अगोरी (अघोरी?) किले का गहरा सम्बन्ध है, यह किला अपने भग्न रूप में आज भी मौजूद तो है मगर है बहुत प्राचीन और इसके प्रामाणिक इतिहास के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है |

 यह किला ईसा पूर्व का है किन्तु दसवीं सदि के आस पास इसका पुनर्निर्माण खरवार और चन्देल राजाओं ने करवाया। 

अगोरी दुर्ग के ही नृशंस अत्याचारी राजा मोलागत से लोरिक का घोर युद्ध हुआ था | 

बजरंगबली हनुमान के अंश कहे जाने वाले वीर लोरिक योगमाया माँ भवानी के बहुत बड़े भक्त थे और उन्हें स्वयं माँ का आशिर्वाद प्राप्त था। 

कहीं कहीं ऐसी भी जनश्रुति है कि लोरिक को तांत्रिक शक्तियाँ भी सिद्ध थीं और लोरिक ने अघोरी किले पर अपना वर्चस्व कायम किया | लोरिक ने उस समय के अत्यंत क्रूर राजा मोलागत को पराजित किया था और इस युद्ध का हेतु बनी थी - लोरिक और मंजरी (या चंदा) की प्रेम कथा।

अगोरी के निकट ही महर सिंह नाम के एक यदुवंशी अहीर जागीरदार करते थे | 

महर सिंह की ही आख़िरी सातवीं संतान थी कुमारी मंजरी जो अत्यंत ही सुन्दर थी | जिस पर मोलागत की बुरी नजर पडी थी और वह उससे विवाह करने की लालसा पाल रहा था।

 इसी दौरान राजकुमारी मंजरी के पिता महर सिंह को लोरिक के बारे में जानकारी हुई और मंजरी की शादी लोरिक से तय कर दी गयी | 

वीर अहीर लोरिक बलिया जनपद के गौरा गाँव के निवासी थे, जो बहुत ही सुंदर, बहादुर और बलशाली थे | 

रौबदार मूंछें, 8 फीट ऊंचे भीमकाय शरीर के वीर लोरिक की तलवार का वज़न 85 मण था। 
उनके बड़े भाई का नाम था सवरू । 

वीर लोरिक माँ भवानी के बहुत बड़े भक्त थे और कहा जाता है

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